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रिसॉर्ट की शादी

10 Mar, 2025
*रिसोर्ट वाली नई बीमारी* सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हैं, शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं। कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल में शादियाँ होने की परंपरा चली, परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है। अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादियाँ होने लगी हैं, शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है, आगंतुक और मेहमान सीधे वहीं आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं, इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं और सच मानिए समारोह में बुलाने वाला भी यही स्टेटस चाहता है कि सिर्फ कार वाले मेहमान ही आए और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी है : - किसको सिर्फ लेडीज संगीत में बुलाना है - किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है - किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है - और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है। इस निमंत्रण में अपनापन की भावना खत्म हो चुकी है, सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है। महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं, मेंहदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं, हल्दी लगाने के लिए भी एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं। मेंहदी रस्म में सभी को हरी ड्रेस पहनना अनिवार्य है जो नहीं पहनता है उसे हीन भावना से देखा जाता है अर्थात लोअर केटेगरी का मानते हैं, ब्यूटी पार्लर को दो-तीन दिन के लिए बुक कर दिया जाता है। फिर हल्दी की रस्म आती है, इसमें भी सभी को पीला कुर्ता-पाजामा पहनना अति आवश्यक है इसमें भी वही समस्या है, जो नहीं पहनता है उसकी इज्जत कम होती है। प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं जिसके कारण दूर-दराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है, क्योंकि सब अमीर हो गए हैं, पैसे वाले हो गए हैं, मेल-मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है, रस्म अदायगी पर मोबाइलों से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं, सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है। कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता, वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने-अपने कमरों में ही गुजार देते हैं। विवाह समारोह के मुख्य स्वागत द्वार पर नव-दंपत्ति के विवाह पूर्व आलिंगन वाली तस्वीरें, हमारी विकृत हो चुकी संस्कृति पर सीधा तमाचा मारते हुए दिखती हैं, अब वर-वधू के नाम के आगे कहीं भी चि० और सौ०/का० नहीं लिखा जाता क्योंकि अब इन शब्दों का कोई सम्मान बचा ही नहीं इसलिए अंग्रेजी में लिखे जाने लगे हैं। अंदर एंट्री गेट पर आदम कद स्क्रीन पर नव दंपति के विवाह पूर्व आउटडोर शूटिंग के दौरान फिल्माए गए फिल्मी तर्ज पर गीत संगीत और नृत्य चल रहे होते हैं, आशीर्वाद समारोह तो कहीं से भी नहीं लगते हैं, पूरा परिवार प्रसन्न होता है अपने बच्चों के इन करतूतों पर पास में लगा मंच जहां नव-दंपत्ति लाइव गल-बहियाँ करते हुए मदमस्त दोस्तों और मित्रों के साथ अपने परिवार से मिले संस्कारों का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं। स्टेज के पास एक स्क्रीन लगा रहता है, उसमें प्रीवेडिंग सूट की वीडियो चलती रहती है, उसमें यह बताया जाता है कि शादी से पहले ही लड़की लड़के से मिल चुकी है और कितने 'अंग प्रदर्शन' वाले कपड़े पहनकर… - कहीं चट्टान पर - कहीं बगीचे में - कहीं कुएं पर - कहीं बावड़ी में - कहीं शमशान में - तो कहीं नकली फूलों के बीच इसके बाद रिसेप्शन स्टार्ट होता है, स्टेज पर वरमाला होती है पहले लड़की और लड़के वाले मिलकर हंसी-मजाक करके वरमाला करवाते थे, आजकल स्टेज पर धुंए की धूनी छोड़ देते हैं, उसके बाद दूल्हा-दुल्हन को अकेले छोड़ दिया जाता है, बाकी सभी को दूर भगा दिया जाता है और फिल्मी स्टाइल में स्लो-मोशन में वह एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं, साथ ही लेजर शो/आतिशबाजी भी होती है। इसके बाद वर निकासी होती है, बारात प्रोसेशन में ढोल पर बैठकर भले घर की बहु-बेटियां 50हजार नाच गाने पर उड़ा देती हैं। हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है, अतः मेरा अपने मध्यम वर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है कि आपका पैसा है, आप ने कमाया है, आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं, पर किसी दूसरे की देखा-देखी नहीं। कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान-सम्मान को खत्म मत करे, जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्च कीजिए, 4-5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है और आप कितना ही बेहतर करें लोग जब तक रिसेप्शन हॉल में है तब तक आप की तारीफ करेंगे और लिफाफा देकर आपके द्वारा की गई आव-भगत की कीमत चुकाकर निकल जाएंगे। मेरा युवा वर्ग से भी अनुरोध है कि अपने परिवार की हैसियत से ज्यादा खर्चा करने के लिए अपने परिजनों को मजबूर न करें, आपके इस महत्वपूर्ण दिन के लिए आपके माता-पिता ने कितने समर्पण किए हैं यह आपको खुद माता-पिता बनने के उपरांत ही पता लगेगा। दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए, अपना दांपत्य जीवन सर उठा के, स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए।

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